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दोस्तो आज हम Vacuum tubes और Semiconductors के हिस्ट्री के बारे में जानेंगें की आधुनिक समय में मानव द्वारा उपयोग की जाने वाले रेडियो, टेलीविज़न, रडार, लंबी दूरी के टेलीफोन नेटवर्क्स, कंप्यूटर्स का विकास कैसे सम्भव हो सका।
दोस्तो ये सब वैक्यूम ट्यूब्स ही थे जिनकी वजह से इलेक्ट्रिकल सिस्टम में इलेक्ट्रॉनिक परिपथों का जन्म हुआ।
आज इन इलेक्ट्रॉनिक परिपथों की वजह से सभी उपकरणों के आकार बहुत ही छोटे हो गये है। जो इनको पोर्टेबल, रिलाएबल और लोंग लाइफ का बना पाता है।
देखा जाए तो ट्रांसफार्मर की मदद से AC वोल्टेज को नियंत्रित किया जाता है।
पर DC वोल्टेज के मान को हम ट्रांसफॉमर के द्वारा कम ज्यादा नही कर सकते हैं। अतः इलेक्ट्रॉनों के प्रवाह को नियंत्रित करने के लिए वाल्व की आवश्यकता थी। जो एक इलेक्ट्रॉनिक वाल्व(vacuum tubes) / इलेक्ट्रॉनिक स्विच की तरह से काम कर सके।
वाल्व या वैक्यूम ट्यूब्स इसी प्रकार के स्विटचेस हैं जो धारा की दिशा को एक दिशत्मक बनाये रखते हैं। जैसे आपने वाल्व को देखा होगा कि वो हवा या गैस का प्रवाह को एक ही तरफ कर देता हैं। vacuum tubes के बहुत से महत्वपूर्ण उपयोग हैं जिनमे से रेक्टिफिकेशन और अम्प्लीफिकेशन को नीचे समझाया गया हैं।
रेक्टिफिकेशन के क्रिया है जिसके द्वारा AC सप्लाई को DC सप्लाई में बदला जाता है। वैक्यूम ट्यूब एक तरह की स्विचिंग डिवाइस है जो करेंट प्रवाह को एक डायरेक्शन मैं बना पाती हैं। यदि वैक्यूम डायोड की इनपुट में AC वोल्टेज को अप्लाई किया जाए तो AC साइकिल की धनात्मक हाफ साइकिल में वैक्यूम डायोड ON हो जाएगा और ऋणात्मक हाफ साइकिल में OFF हो जाएगा। ऐसा इसलिए सम्भव हो पाता है क्यों कि Vacuum tube के कैथोड को हीट किया जाता है अतः जिससे कैथोड इलेक्ट्रॉन एमिटर (इलेक्ट्रॉन उत्सर्जक) बन जाता है। धनात्मक हाफ साइकिल में वैक्यूम ट्यूब का अनॉड AC सप्लाई के +ve से जुड़ा हुआ होता है और कैथोड -ve से, इस दशा में Vacuum tube ON हो जाता है। लेकिन ऋणात्मक हाफ साइकिल में Vacuum tube का अनोड -ve से जुड़ जाता है और कैथोड +ve से अतः Vacuum tube OFF हो जाता है। क्यों की कैथोड से निकलने वाले इलेक्ट्रॉन और -ve टर्मिनल एक दूसरे को प्रतिक्रशित (Repel) करते हैं। जिससे आउटपुट में धनातमक हाफ साइकिल की पल्सेस मिलती है। इस क्रिया को रेक्टिफिकेशन कहते हैं। अतः Vacuum tube के उपयोग से हम AC इनपुट को DC pulses में बदल सकते हैं।
वैक्यूम ट्यूब के द्वारा हम low power के सिग्नल की stregnth को बढ़ाकर उसे संभव आउटपुट में बदल सकते हैं। इस क्रिया को अम्प्लीफिकेशन कहते हैं। दोस्तो कोई भी लौ पावर(वोल्टेज एंड करंट) सिग्नल (जैसे-बड़े स्पीकर्स में साउंड सिगनल की पावर को ज्यादा करना ताकि वो सभी तक आसानी से पहुच सके) को Vacuum tubes के द्वारा हाई पावर में बदल जा सकता है। इस क्रिया में Vacuum tubes के एनोड और कैथोड के बीच में एक और प्लेट को जोड़ देते हैं जिसे ग्रिड प्लेट कहा जाता है। इस प्रकार के वैक्यूम ट्यूब ट्रायोड वाल्व कहलाते है। जब ग्रिड प्लेट में लौ पावर धनात्मक इनपुट होता है तब Vacuum tube के आउटपुट पर हाई पावर सिग्नल मिलता है। और जब ग्रिड प्लेट का लौ पावर इनपुट ऋणात्मक होता है तब Vacuum tube के कैथोड से निकलने वाले इलेक्ट्रॉन्स ग्रिड इनपुट को रिपल(प्रतिकर्षित) कर देते हैं। अतः इस प्रकार से लौ पावर सिग्नल को हाई पावर सिग्नल में बदला जाता है।
ऐसे उपकरण जिनमें इलेक्ट्रॉनों के प्रवाह को नियंत्रित किया जा सकता है और जो आधुनिक इलेक्ट्रिकल-इलेक्ट्रॉनिक्स सर्किट के बेसिक बिल्डिंग बलॉक्स हैं वो सभी सेमीकंडक्टर्स उपकरण हैं। आज हमारे चारों तरफ जो भी उपकरण हम उपयोग कर रहें हैं लगभग वो सभी उपकरण ट्रांजिस्टर-डायोड से निर्मित किए गए हैं। और ट्रांजिस्टर को सेमीकंडक्टर मटेरियल से बनाया जाता है।
ट्रांजिस्टर की खोज 1948 में हुई थी। लेकिन इससे पहले जो उपकरण ज्यादातर उपयोग में लाये जाते थे वो वैक्यूम ट्यूब या वाल्व थे। जिनमे कैथोड और एनोड प्लेट्स फिक्स्ड रहती थी। ये अलग-अलग प्रकार के होते थे। जैसे - डायोड वैक्यूम ट्यूब जिसमें एक एनॉड और एक कैथोड होता था। ट्रायोड वैक्यूम ट्यूब जिसमें एनोड, कैथोड और ग्रिड प्लेट होती थी, और इसी प्रकार टेट्रा वैक्युम ट्यूब और पेंटा वैक्युम ट्यूब होते थे। इन सभी वैक्युम ट्यूब में कैथोड प्लेट को गर्म करके इलेक्ट्रोन्स का उत्सर्जन किया जाता था। और उत्सर्जित इलेक्ट्रोन्स को वैक्यूम ट्यूब के बीच वोल्टेज देकर नियंत्रित किया जाता था। इन वैक्युम ट्यूब की वजह से इलेक्ट्रॉनिक क्षेत्र में काफी कुछ सम्भव हो सका था। लेकिन इन ट्यूब्स में कुछ बड़ी कमियां भी थी जो की नीचे समझायी गयी हैं।
सेमीकंडक्टर के इतिहास में सबसे बड़ा बदलाव तब आया जब 1930 के आसपास आधुनिक सॉलिड स्टेट सेमीकंडक्टर के डेवोलोपमेंट ने गति पकड़ी जब ये पता लगा की कुछ सेमीकंडक्टर और उनसे बने जंक्शन में आवेश वाहकों की संख्या और दिशा को नियंत्रित किया जा सकता है। इन सेमीकंडक्टर को ऑपरेट करने के लिए लाइट, हीट(Heat) या फिर स्मॉल वोल्टेज से बहुत ही साधारण तरीकों से Excited (Excitation क्रिया है जिससे आवेश वाहकों को नियंत्रित किया जाता है) किया जाता है। हमने देखा था कि वैक्यूम ट्यूब्स में इलेक्ट्रॉन का उत्सर्जन(Emission) कैथोड को हीट करके किया जाता है और उनके प्रवाह को बनाने के लिए निर्वात की आवश्यकता होती है। जबकि semiconductors में आवेश वाहक सॉलिड के भीतर ही प्रवाहित होते हैं। जिसमे बाहर से हीट नही करना होता है। सेमीकंडक्टर डिवाइस की कुछ बड़ी उपलब्धियां है जो नीचे समझाई गयी हैं।
लगभग सभी उपकरण में वैक्यूम ट्यूब्स को semiconductors ने रिप्लेस कर लिया है। वैक्यूम ट्यूब्स की जिनकी वजह से Tv देखना सम्भव हो सका था।
पहली जनरेशन(First generation) के कंप्यूटर में Vacuum tubes का उपयोग किया जाता था।
Tv या कंप्यूटर मॉनिटर में CRT(cathode ray tube) जो की एक वैक्यूम ट्यूब ही होती थी। अब उनकी जगहों पर ट्रांसिस्टर्स लगे हुए LCD और LED Tv आ चुके हैं जो की कॉम्पैक्ट, और रिलाएबल होते हैं। तो दोस्तो इस प्रकार Vacuum tubes हमसे दूर होते चले गए और आज के आधुनिक समय में बाजार में ट्रांसिस्टर्स-डायोड का पूरी तरह से वार्चश्व है।
आशा करते हैं दोस्तो आप Vacuum tubes और Semiconductors की जानकारी से सहमत होंगे यदि इससे सम्भन्धित आपके कोई सुझाव हैं तो आप नीचे कमेंट बॉक्स में कर सकते हैं।
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